Friday, September 30, 2011

श्रेया घोषाल: नई पौध, नई आवाज


उभरती प्‍लबैक सिंगर श्रेया घोषाल

स्‍वर कोकिला लता मंगेशकर
वर्ष 2001 में बालीवुड में बतौर प्‍लेबैक सिंगर के रूप में आगाज करने वाली श्रेया घोषाल से आज कौन अपरिचित होगा। श्रेया घोषाल द्वारा गाए फिल्‍म ‘देवदास’ के गीत ‘बैरी पिया’ के मधुर सुर ने श्रोताओं के कानों में न केवल रस घोला, बल्‍कि वो श्रोताओं के सामने लताजी की परछाई के रूप अवतरित हुईं।
पिछले कई दशकों से भारत रत्‍न सुर साम्रागी लता मंगेशकर ही ऐसे ट्रीटमेंट वाली गीत गाती आई हैं, लेकिन एक लंबे इंतजार के बाद अब जाकर भारत को ऐसा दूसरा कोहिनूर मिला है, जो उनके खूबियों को आगे बढ़ाने की योग्‍यता रखता है। यकीन मानिए, श्रेया घोषाल के देवदास में गाए गीतों को सुनकर श्रोता एक बारगी तो भरोसा ही नहीं कर सके कि यह लता जी की आवाज नहीं हैं।
इस नवोदित गायिका की सुर-लय-ताल और उतार-चढ़ाव की अद्भुत क्षमता ने निर्माता-निर्देशकों तक को सोचने के लिए मजबूर कर दिया। सभी आश्‍यर्चचकित थे, जिसकी उम्‍मीद सिर्फ और सिर्फ लताजी से की जा सकती थी । पर उनके जैसा यह जादू अबकी बार किसी और गायिका ने बिखेरा था।
ये वही श्रेया घोषाल हैं जिनकी आवाज में मौजूद मासूमियत और कशिश ने दिखा दिया था कि भारतीय संगीत के असीम ख़जाने में अभी कुछ और हीरे निकलने बाकी हैं। बैरी पिया की कामयाबी के बाद फिल्‍म उद्योग को श्रेया घोषाल में जूनियर लता जी की छवि दिखाई देन लगी। क्‍योंकि श्रेया की आवाज में न केवल लताजी जैसा जादूई अंदाज दिखाई दिया बल्‍कि लताजी जैसी अन्‍य समानताएं भी दिखाई दीं, जो उनके जैसी महान सिंगर के उत्‍तराधिकारी के लिए जरूरी था।
जानकारों के अनुसार बालीवुड में बीते 40 सालों में कई धुरंधर सिंगर्स आई, लेकिन किसी में वो दम नहीं दिखा, जो श्रेया की आवाज में दिखा।
उनके कुछ हिट गीतों जैसे ‘बैरी पिया’, और ‘जादू है नशा है मदहोशियां’, ने बालीवुड में धमाल मचाया । वॉयस क्रिएटिविटी के बल पर उन्‍होंने दिग्‍गजों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि वो लताजी के काफी करीब हैं। शायद यही कारण हो सकता है कि फिल्‍म ‘हम दिल दे चुके सनम’ फेम निर्देशक संजय लीला भंसाली ने वर्ष 2001 में फिल्‍म देवदास के लिए बतौर प्‍लेबैक सिंगर श्रेया घोषाल में विश्‍वास जताया। कोई दो राय नहीं कि वो हर मोर्चे पर सफल भी रहीं।
शायद ये बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि संजय लीला भंसाली ने फिल्‍म ‘देवदास’ के लिए पहले लता जी को साइन करना चाहते थे, लेकिन उन्‍होंने बाद में श्रेया घोषाल को उनके विकल्‍प के रूप में चुना। भंसाली के इस कदम से बालीवुड न केवल दंग था। चारो ओर इसकी आलोचना भी हुई। कारण ये भी रहा कि ऐसी ट्रीटमेंट वाले गीतों के लिए कोई भी निर्देशक या फिर संगीतकार लताजी के अलावा किसी और के बारें में सोचता ही नहीं था। इसे पारखी कहना गलत नहीं होगा कि भंसाली अपने फैसले पर अडिग रहे और सफल भी हुए। शाहरूख, माधुरी और ऐश्‍वर्या राय बच्‍चन अभिनीत ‘देवदास’ न केवल बेहतर निर्देशन, बेहतर अभिनय के लिहाज से लाजबाव फिल्‍म रही बल्‍कि बेहतर संगीत और प्‍लेबैक सिंगिंग के लिए भी खूब सराही गई। गीत ‘बैरी पिया’ के लिए श्रेया को नेशनल एवार्ड मिला। साथ ही इसी फिल्‍म के एक अन्‍य गीत ‘डोला रे डोला’ के लिए उन्हें जी सिनेमा एवार्ड से नवाजा गया।
इसके बाद तो बालीवुड में वही हुआ जो हमेशा होता है। फिल्‍म निर्माता-निर्देशकों और संगीतकारों में श्रेया के साथ काम करने की होड़ लग गई। हर कोई उन्‍हें अपनी फिल्‍मों के गीतों के लिए साइन करना चाहता था। वर्ष 2002 में पूजा भट्ट निर्देशित फिल्‍म ‘जिस्‍म’ का गीत ‘जादू है नशा है मदहोशियां’ ने तो लोगों को वास्‍तव में मदहोश कर दिया। इस गीत के लिए उन्‍हें वर्ष 2003 में फिल्‍म फेयर एवार्ड दिया गया। यही नहीं, भारतीय सिनेमा जगत के स्‍तंभ माने जाने वाले राजश्री बैनर, जिनकी पहली पसंद लताजी थीं, ने भी निर्देशक सूरज बड़जात्‍या के निर्देशन में बनने वाली फिल्‍म ‘विवाह’ के लिए श्रेया को ही साइन किया। इसी फिल्‍म के एक गीत ‘मुझे हक है’ ने लताजी की कमी नहीं खलने दी। लताजी के बदले श्रेया को तुरूप का इक्‍का मानने में इंडस्‍ट्री के अग्रणी प्रोडक्‍शन हाउस यशराज बैनर ने भी देर नहीं की। गौरतलब है कि निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा ने खुद निर्देशित अपनी आखिरी फिल्‍म ‘वीरजारा’ के गीतों के लिए विशेष आ्रगह कर लताजी को राजी किया था। इससे पहले लताजी ही उनकी फिल्‍मों में लीड सिंगर हुआ करती थीं। लेकिन आज जब इनकी कंपनी वीरजारा के बाद दर्जनों फिल्‍मों को निर्माण कर चुकी है, तो देखने में आता है कि इनमें से किसी में भी लताजी ने प्‍लेबैक सिंगिंग नहीं की। इनकी फिल्‍मों में अब श्रेया घोषाल और सुनिधि चौंहान गीत गा रही हैं।
अपने कैरियर की शुरूआत से लेकर वर्ष 2011 तक श्रेया घोषाल द्वारा गाए गए गीतों यह साबित कर दिया है कि फिल्‍म उद्योग को एक और लता मिल गई है। आज ये मानने से किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए कि श्रेया घोषाल लताजी का विकल्‍प बन कर उभरी हैं। भले ही अभी यह उनकी शुरूआत है और लताजी जैसा मुकाम हासिल करने के लिए उन्‍हें काफी वक्‍त लगेगा, लेकिन सुर और लय पर उनकी पकड़ ने ये साबित कर दिखाया है कि उनमें लताजी तक पहुंचने में दम-खम है।
बेशक लता मंगेशकर एक ऐसा मुकाम है, जहां पहुंचना किसी भी के लिए सपना हो सकता है, लेकिन साथ ही यह भी सच है कि नए लोग आते हें और आते ही रहेंगे और इन्‍हीं नए लोगों में से कोई पुराने की जगह विराजमान हो जाएगा। इसका अर्थ उस पुराने के महत्‍व को कम करना कतई नहीं है, बल्‍कि नए को सम्‍मान देना है और उसके लिए नए रास्‍ते खोलना है ताकि आने वाली पीढ़ियों को उनका सही हक मिल सके। निश्‍चित रूप से श्रेया घोषाल ऐसी ही एक सिंगर हैं, जिन्‍हें लता जितनी बुलंदियों को छूना है। 
श्रेया घोषाल का सफर
बंगाली मूल की श्रेया घोषाल का जन्‍म वर्ष 1984 में पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर जिले में एक ब्राहम्‍ण परिवार में हुआ। कहा जाता है कि श्रेया के पूर्वज बांग्‍लादेश से भारत आए थे। हालांकि श्रेया राजस्‍थान के कोटा जिले में पली बढ़ी हैं। उनके पिता बी घोषाल एक सरकारी मुलाजिम हैं, जो रावतभाटा परमाणु परियोजना में इंजीनियर थे जबकि उनकी माता गायिका होने के साथ एक साहित्‍य परास्‍नातक हैं। कहा जाता है श्रेया घोषाल में गायिकी का हुनर उनकी मां से विरासत में मिला है।
श्रेया महज चार वर्ष की उम्र में ही हारमोनियम बजाना सीख गई थी और अपनी गायिका मां का साथ देती थीं। हिंदुस्‍तानी शास्‍त्रीय संगीत की शिक्षा उन्‍होंने कोटा में ही हासिल की है, जहां उन्‍होंने गुरू महेशचंद्र शर्मा की देखरेख में अपनी ट्रेनिंग पूरी की।
जीटीवी पर प्रसारित होने वाले टैलेंट हंट शो सारेगामा का चाइल्‍ड स्‍पेशल शो जीतने वाली श्रेया ने यहीं से बालीवुड में प्‍लैबैक सिंगिंग की दस्‍तक दे दी थी। सारेगामा में श्रेया की प्रतिभा से प्रभावित होकर तत्‍कालीन सारेगामा शो के जज कल्‍यानजी ने ही उनके मां बाप को श्रेया को मुंबई भेजने की सलाह दी। कल्‍यानजी की सलाह पर श्रेया के मां-बाप ने श्रेया को मुंबई भेजने पर राजी हुए और मुंबई आकर श्रेया ने करीब 18 महीनों तक कल्‍यानजी से संगीत की ट्रेनिंग ली, लेकिन शास्‍त्रीय संगीत की पूरी ट्रेनिंग उन्‍होंने मुक्‍ता भिड़े नामक एक संगीत गुरू से हासिल की।     
श्रेया घोषाल हिंदी के अलावा कई और भारतीय भाषाओं में गाना गा चुकी हैं, जिसमें असमी, बंगाली, कन्‍नड, मलयालम, मराठी, पंजाबी, तमिल और तेलगु शामिल हैं। श्रेया को बालीवुड फि‍ल्‍म देवदास के गाने के लिए सबसे पहला मौका मिला, जिसमें गाए उनके गीतों को न केवल प्रशंसा मिली बल्कि उन्‍हें इसी फि‍ल्‍म के लिए नेशनल एवार्ड भी दिया गया। कहा जाता है कि देवदास के निर्देशक संजय लीला भंसाली ने देवदास के गीतों के लिए लताजी के स्‍थान पर श्रेया को मौका दिया था, जहां श्रेया ने अपने चयन को सही कर दिखाया।

Thursday, September 29, 2011

जगिया ने दिलाई पहचान: शशांक व्‍यास


जगिया यानी शशांक, अरे भाई ठीक है, अपना डा. जगत। कलर्स चैनल पर प्रसारित होने वाले ‘बालिका वधू’ सीरियल के नियमित दर्शक तो शशांक को अपने घर का सदस्‍य ही मानने लगे थे, लेकिन जब से जगिया शहर से दूसरी शादी करके गांव लौटा है, वह अब हर किसी की आंखों की कि‍रकिरी बन गया है।पिछले तीन वर्षों से लगातार प्रसारित हो रहे इस मशहूर सीरियल में वयस्‍क जगिया के किरदार का निभाकर शशांक व्‍यास काफी खुश हैं, लेकिन नए नवेले जगिया की हरकतों से टीवी दर्शक उससे जरूर कुढ़ा हुआ है। हालांकि शशांक की मानें, तो उन्‍हें सीरियल में निभाए गए अपने किरदार में काफी मजा आ रहा है, यही नहीं, शशांक को जगिया किरदार से बेहद लगाव भी है, तभी तो वह बजाय अपने असली नाम के खुद को जगिया से पहचाना जाना अधिक पसंद करते हैं। आखिर ऐसा हो भी क्‍यों न, इस सीरियल में एंट्री के बाद शशांक की किस्‍मत जो बदल गई है। शशांक कहते हैं कि सीरियल में अगर जगिया जवान नहीं होता, तो उन्‍हें मौका कैसे मिलता, वाकई शशांक की बातों दम है।
बालिका वधू में निभाए जगिया के किरदार से शंशाक की पहचान आज हर घर में हो गई है। शशांक आज हर परिवार की चाय की चुस्कियों से लेकर खाने की टेबल पर चर्चा के विषय बन गए हैं। महिलाएं आनंदी पर जगिया द्वारा ढाए गए जुल्‍मों की चर्चा किए बगैर नहीं रह पाती हैं। उन्‍हें जगिया से डा. जगत बने शशांक के किरदार से अब उतना मोह नहीं रहा, क्‍योंकि वे आनंदी के दुख से दुखी हैं और गौरी और जगिया की शादी से उतनी ही नाराज हैं जितने कि जगिया के माता-पिता और दादी सा।
दर्शकों के दिल में घर कर गए इस सीरियल की स्‍क्रीप्टिंग में इतना दम है कि प्रत्‍येक वर्ग का दर्शक इस सीरियल को देखने के लिए बरबस टीवी के पास खिंचा चला जाता है। शशांक अपनी इस कामयाबी में बेहद खुश हैं लेकिन उन्‍हें दुख है कि उनकी इस कामयाबी को देखने के लिए उनकी मां उनके साथ नहीं हैं। शशांक बताते हैं कि उनकी मां को भी बालिका वधू सीरियल बहुत पसंद था और एक भी एपीसोड मिस करना नहीं पसंद करती थीं। लेकिन जब मैं इस सीरियल का हिस्‍सा बना, तो मां उनके साथ नहीं है। इमोशनल होकर शशांक कहते हैं कि अगर मां मुझे जगिया के रोल में बालिका वधू सीरियल में देखती तो बहुत खुश होतीं। बकौल शशांक, ‘‘हालांकि मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि मुझे उस सीरियल में काम करने का मौका मिला, जो सीरियल मेरी मां का पसंदीदा था।’’
शशांक के अनुसार जब उन्‍हें इस सीरियल में वयस्‍क जगिया का रोल ऑफर किया गया, उस वक्‍त वे बेहद घबराए हुए थे। चूंकि बालिका वधू उस वक्‍त काफी चर्चित सीरियल में से एक था और एक बड़ा ब्रांड बन चुका था।
‘‘मुझे जगिया के किरदार में खुद को साबित करने के लिए काफी मेहनत करना पड़ा। मुझे पता था कि दर्शकों की निगाहें नए जगिया का बेसब्री से इंतजार कर रही थी और मुझे उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना था।’’
उज्‍जैन के साधारण परिवार में जन्‍में शशांक को शुरू से ही थियेटर में रूचि थी। यही कारण था कि एमबीए की तैयारी बीच में ही छोड़कर शशांक संघर्ष करने के लिए मुंबई आ गए। लेकिन इस दौरान करीब दो वर्षों तक शशांक को कई निजी और आर्थिक समस्‍याओं को सामना करना पड़ा, लेकिन उन्‍होंने हिम्‍मत नहीं हारी। हालांकि इस बीच उन्‍हें यशराज प्रोडक्‍शन की ‘रिश्‍ता डाटकाम’ सीरियल में एक एपीसोड करने का मौका मिला और कई प्रिंट विज्ञापन भी किए। लेकिन बालिका वधू सीरियल में जगिया के किरदार ने शशांक की किस्‍मत बदल दी।
शशांक कहते हैं कि इतने बड़े सीरियल का हिस्‍सा बनना आसान काम नहीं था, लेकिन एक्टिंग की प्रति उनकी दीवानगी और समर्पण ने उन्‍हें वहां पहुंचाया, जिस मुकाम पर आज वो हैं। ‘‘मैं हमेशा से ही एक्टिंग को अपना कैरियर बनाना चाहता था, लेकिन मुझे मालूम नहीं था कि इसकी शुरूआत कैसे होगी। शायद इसीलिए मैं मुंबई आ गया और करीब दो वर्षों के कड़े संघर्ष के बाद मुझे यह सफलता हासिल हुई। मुझे पता था कि मैं दर्शकों का मनोरंजन कर सकूंगा, क्‍योंकि अपने जीवन में मुझे शायद यही करना हमेशा से पसंद था।’’   

चेहरा नहीं अभिनय दिलाता है स्‍टारडम

नसीरूद्दीन शाह भले ही हीरो की औपचारिक श्रेणी की कसौटी खरे नहीं उतरते हों, लेकिन उन्‍होंने अपने अभिनय के दम पर आज न केवल बालीवुड के सबसे उम्‍दा अभिनेता में शुमार किए जाते हैं बल्कि वे हजारों अभिनेतओं के प्रेरणा स्रोत भी हैं। 
नसीर ने हीरो की कैटगरी के लिए चेहरे को वरीयता देने की कसौटी को न केवल धता बताया बल्कि इस कसौटी को चैलेंज किया और उसमें सफलता भी हासिल की। नसीर कहते हैं एक्टर बनाने के लिए लगन होनी चाहिए। हिंदी सिनेमा जगत में पिछले कई सालों से अपने अभिनय का लोहा मनवा रहे अभिनेता नसीरुद्दीन शाह कहते हैं कि एक अच्छा एक्टर बनने के लिए ख़ूबसूरत होना ज़रूरी नहीं है।
नसीर कहते हैं, ''मेरे ख़्याल से शक्ल-सूरत, कद-काठी या गोरा रंग होना ज़रूरी नहीं है। एक अभिनेता बनने के लिए आपके अंदर सच्चाई होनी चाहिए, आपमें एक्टर बनने की लगन होनी चाहिए''।
नसीर के मुताबिक़ अभिनय कभी सीखा नहीं जा सकता। इसके लिए पूरी उम्र लग जाती है। नसीर कहते हैं जैसे जैसे एक कलाकार की उम्र बढती है उसके पास सीखने के लिए कई चीज़ें भी बढ़ती जाती हैं। नसीरुद्दीन शाह मानते हैं कि अभिनेता को सब कुछ आना चाहिए, नाच गाना भी आना चाहिए लेकिन वो क़ुबूल करते हैं कि नाच गाने में उनका हाथ कुछ तंग है। मज़ाकिया अंदाज़ में वो कहते हैं कि अगर उनके गुरु रोशन तनेजा ने उनके साथ थोड़ी सख्ती बरती होती, उन पर डंडा घुमाया होता तो शायद आज वो भी अच्छे डांसर होते।
हाल ही मैं नसीर मुंबई स्थित रोशन तनेजा के एक्टिंग स्कूल के पुरस्कार समारोह में शामिल हुए थे। नसीर मानते हैं की रोशन तनेजा ने उनके जीवन को काफी प्रभावित किया है। नसीर फ़िल्मों में जितना सक्रिय हैं उतना ही रंगमंच से भी जुड़े हैं। रंगमंच और फ़िल्मों के बीच के अंतर को बताते हुए नसीर कहते हैं, ''रंगमंच में आपको हर एक दर्शक से जुड़ना होता है, जबकि फ़िल्मों में आपको सिर्फ कैमरे के साथ जुड़ना होता है, क्योंकि कैमरा दर्शकों की आंख होती है। जो कैमरा देख रहा है वही दर्शक भी देखेंगे, इसलिए कैमरा से दोस्ती करना बहुत ज़रूरी है''।
नसीरुद्दीन शाह परदे पर किसी और कलाकार के साथ किसी भी तरीके की प्रतिस्पर्धा में यक़ीन नहीं रखते। वो कहते हैं कि उन्हें ये बात बड़ी अटपटी लगती है जब कोई ये कहता है की फ़लां दृश्य में ये कलाकार दूसरे कलाकार पर भारी पड़ गया।
नसीर कहते हैं, ''कलाकार आपस में कुश्ती नहीं लड़ते, एक दूसरे को पछाड़ने की फ़िराक़ में नहीं होते। वो तो बस एक दूसरे के साथ काम कर रहे हैं। एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश नहीं कर रहे होते।” नसीर जल्द ही विद्या बालन के साथ ‘द डर्टी पिक्चर’ और अनुराग कश्यप की ‘माइकल’ में नज़र आएंगे।