उभरती प्लबैक सिंगर श्रेया घोषाल |
स्वर कोकिला लता मंगेशकर |
वर्ष 2001 में बालीवुड में बतौर प्लेबैक सिंगर के रूप में आगाज करने वाली श्रेया घोषाल से आज कौन अपरिचित होगा। श्रेया घोषाल द्वारा गाए फिल्म ‘देवदास’ के गीत ‘बैरी पिया’ के मधुर सुर ने श्रोताओं के कानों में न केवल रस घोला, बल्कि वो श्रोताओं के सामने लताजी की परछाई के रूप अवतरित हुईं।
पिछले कई दशकों से भारत रत्न सुर साम्रागी लता मंगेशकर ही ऐसे ट्रीटमेंट वाली गीत गाती आई हैं, लेकिन एक लंबे इंतजार के बाद अब जाकर भारत को ऐसा दूसरा कोहिनूर मिला है, जो उनके खूबियों को आगे बढ़ाने की योग्यता रखता है। यकीन मानिए, श्रेया घोषाल के देवदास में गाए गीतों को सुनकर श्रोता एक बारगी तो भरोसा ही नहीं कर सके कि यह लता जी की आवाज नहीं हैं।
इस नवोदित गायिका की सुर-लय-ताल और उतार-चढ़ाव की अद्भुत क्षमता ने निर्माता-निर्देशकों तक को सोचने के लिए मजबूर कर दिया। सभी आश्यर्चचकित थे, जिसकी उम्मीद सिर्फ और सिर्फ लताजी से की जा सकती थी । पर उनके जैसा यह जादू अबकी बार किसी और गायिका ने बिखेरा था।
ये वही श्रेया घोषाल हैं जिनकी आवाज में मौजूद मासूमियत और कशिश ने दिखा दिया था कि भारतीय संगीत के असीम ख़जाने में अभी कुछ और हीरे निकलने बाकी हैं। बैरी पिया की कामयाबी के बाद फिल्म उद्योग को श्रेया घोषाल में जूनियर लता जी की छवि दिखाई देन लगी। क्योंकि श्रेया की आवाज में न केवल लताजी जैसा जादूई अंदाज दिखाई दिया बल्कि लताजी जैसी अन्य समानताएं भी दिखाई दीं, जो उनके जैसी महान सिंगर के उत्तराधिकारी के लिए जरूरी था।
जानकारों के अनुसार बालीवुड में बीते 40 सालों में कई धुरंधर सिंगर्स आई, लेकिन किसी में वो दम नहीं दिखा, जो श्रेया की आवाज में दिखा।
उनके कुछ हिट गीतों जैसे ‘बैरी पिया’, और ‘जादू है नशा है मदहोशियां’, ने बालीवुड में धमाल मचाया । वॉयस क्रिएटिविटी के बल पर उन्होंने दिग्गजों को सोचने पर मजबूर कर दिया कि वो लताजी के काफी करीब हैं। शायद यही कारण हो सकता है कि फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ फेम निर्देशक संजय लीला भंसाली ने वर्ष 2001 में फिल्म देवदास के लिए बतौर प्लेबैक सिंगर श्रेया घोषाल में विश्वास जताया। कोई दो राय नहीं कि वो हर मोर्चे पर सफल भी रहीं।
शायद ये बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि संजय लीला भंसाली ने फिल्म ‘देवदास’ के लिए पहले लता जी को साइन करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने बाद में श्रेया घोषाल को उनके विकल्प के रूप में चुना। भंसाली के इस कदम से बालीवुड न केवल दंग था। चारो ओर इसकी आलोचना भी हुई। कारण ये भी रहा कि ऐसी ट्रीटमेंट वाले गीतों के लिए कोई भी निर्देशक या फिर संगीतकार लताजी के अलावा किसी और के बारें में सोचता ही नहीं था। इसे पारखी कहना गलत नहीं होगा कि भंसाली अपने फैसले पर अडिग रहे और सफल भी हुए। शाहरूख, माधुरी और ऐश्वर्या राय बच्चन अभिनीत ‘देवदास’ न केवल बेहतर निर्देशन, बेहतर अभिनय के लिहाज से लाजबाव फिल्म रही बल्कि बेहतर संगीत और प्लेबैक सिंगिंग के लिए भी खूब सराही गई। गीत ‘बैरी पिया’ के लिए श्रेया को नेशनल एवार्ड मिला। साथ ही इसी फिल्म के एक अन्य गीत ‘डोला रे डोला’ के लिए उन्हें जी सिनेमा एवार्ड से नवाजा गया।
इसके बाद तो बालीवुड में वही हुआ जो हमेशा होता है। फिल्म निर्माता-निर्देशकों और संगीतकारों में श्रेया के साथ काम करने की होड़ लग गई। हर कोई उन्हें अपनी फिल्मों के गीतों के लिए साइन करना चाहता था। वर्ष 2002 में पूजा भट्ट निर्देशित फिल्म ‘जिस्म’ का गीत ‘जादू है नशा है मदहोशियां’ ने तो लोगों को वास्तव में मदहोश कर दिया। इस गीत के लिए उन्हें वर्ष 2003 में फिल्म फेयर एवार्ड दिया गया। यही नहीं, भारतीय सिनेमा जगत के स्तंभ माने जाने वाले राजश्री बैनर, जिनकी पहली पसंद लताजी थीं, ने भी निर्देशक सूरज बड़जात्या के निर्देशन में बनने वाली फिल्म ‘विवाह’ के लिए श्रेया को ही साइन किया। इसी फिल्म के एक गीत ‘मुझे हक है’ ने लताजी की कमी नहीं खलने दी। लताजी के बदले श्रेया को तुरूप का इक्का मानने में इंडस्ट्री के अग्रणी प्रोडक्शन हाउस यशराज बैनर ने भी देर नहीं की। गौरतलब है कि निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा ने खुद निर्देशित अपनी आखिरी फिल्म ‘वीरजारा’ के गीतों के लिए विशेष आ्रगह कर लताजी को राजी किया था। इससे पहले लताजी ही उनकी फिल्मों में लीड सिंगर हुआ करती थीं। लेकिन आज जब इनकी कंपनी वीरजारा के बाद दर्जनों फिल्मों को निर्माण कर चुकी है, तो देखने में आता है कि इनमें से किसी में भी लताजी ने प्लेबैक सिंगिंग नहीं की। इनकी फिल्मों में अब श्रेया घोषाल और सुनिधि चौंहान गीत गा रही हैं।
अपने कैरियर की शुरूआत से लेकर वर्ष 2011 तक श्रेया घोषाल द्वारा गाए गए गीतों यह साबित कर दिया है कि फिल्म उद्योग को एक और लता मिल गई है। आज ये मानने से किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए कि श्रेया घोषाल लताजी का विकल्प बन कर उभरी हैं। भले ही अभी यह उनकी शुरूआत है और लताजी जैसा मुकाम हासिल करने के लिए उन्हें काफी वक्त लगेगा, लेकिन सुर और लय पर उनकी पकड़ ने ये साबित कर दिखाया है कि उनमें लताजी तक पहुंचने में दम-खम है।
बेशक लता मंगेशकर एक ऐसा मुकाम है, जहां पहुंचना किसी भी के लिए सपना हो सकता है, लेकिन साथ ही यह भी सच है कि नए लोग आते हें और आते ही रहेंगे और इन्हीं नए लोगों में से कोई पुराने की जगह विराजमान हो जाएगा। इसका अर्थ उस पुराने के महत्व को कम करना कतई नहीं है, बल्कि नए को सम्मान देना है और उसके लिए नए रास्ते खोलना है ताकि आने वाली पीढ़ियों को उनका सही हक मिल सके। निश्चित रूप से श्रेया घोषाल ऐसी ही एक सिंगर हैं, जिन्हें लता जितनी बुलंदियों को छूना है।
श्रेया घोषाल का सफर
बंगाली मूल की श्रेया घोषाल का जन्म वर्ष 1984 में पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर जिले में एक ब्राहम्ण परिवार में हुआ। कहा जाता है कि श्रेया के पूर्वज बांग्लादेश से भारत आए थे। हालांकि श्रेया राजस्थान के कोटा जिले में पली बढ़ी हैं। उनके पिता बी घोषाल एक सरकारी मुलाजिम हैं, जो रावतभाटा परमाणु परियोजना में इंजीनियर थे जबकि उनकी माता गायिका होने के साथ एक साहित्य परास्नातक हैं। कहा जाता है श्रेया घोषाल में गायिकी का हुनर उनकी मां से विरासत में मिला है।
श्रेया महज चार वर्ष की उम्र में ही हारमोनियम बजाना सीख गई थी और अपनी गायिका मां का साथ देती थीं। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उन्होंने कोटा में ही हासिल की है, जहां उन्होंने गुरू महेशचंद्र शर्मा की देखरेख में अपनी ट्रेनिंग पूरी की।
जीटीवी पर प्रसारित होने वाले टैलेंट हंट शो सारेगामा का चाइल्ड स्पेशल शो जीतने वाली श्रेया ने यहीं से बालीवुड में प्लैबैक सिंगिंग की दस्तक दे दी थी। सारेगामा में श्रेया की प्रतिभा से प्रभावित होकर तत्कालीन सारेगामा शो के जज कल्यानजी ने ही उनके मां बाप को श्रेया को मुंबई भेजने की सलाह दी। कल्यानजी की सलाह पर श्रेया के मां-बाप ने श्रेया को मुंबई भेजने पर राजी हुए और मुंबई आकर श्रेया ने करीब 18 महीनों तक कल्यानजी से संगीत की ट्रेनिंग ली, लेकिन शास्त्रीय संगीत की पूरी ट्रेनिंग उन्होंने मुक्ता भिड़े नामक एक संगीत गुरू से हासिल की।
श्रेया घोषाल हिंदी के अलावा कई और भारतीय भाषाओं में गाना गा चुकी हैं, जिसमें असमी, बंगाली, कन्नड, मलयालम, मराठी, पंजाबी, तमिल और तेलगु शामिल हैं। श्रेया को बालीवुड फिल्म देवदास के गाने के लिए सबसे पहला मौका मिला, जिसमें गाए उनके गीतों को न केवल प्रशंसा मिली बल्कि उन्हें इसी फिल्म के लिए नेशनल एवार्ड भी दिया गया। कहा जाता है कि देवदास के निर्देशक संजय लीला भंसाली ने देवदास के गीतों के लिए लताजी के स्थान पर श्रेया को मौका दिया था, जहां श्रेया ने अपने चयन को सही कर दिखाया।
श्रेया घोषाल के सुपर हिट गीत-
बैरी पिया.... देवदास
डोला रे डोला.... देवदास
जादू है नशा है..... जिस्म
बेपनाह प्यार..... कृष्णा कॉटेज
वादा रहा.... खाकी
चीनी कम है..... चीनी कम
मुझे हक है..... विवाह
बरसो रे मेघा.... गुरु
अगर तुम मिल जाओ.....जहर
पीयू बोले..... परिणीता
कंगना रे .....पहेली
ये इश्क हाय.... जब वी मेट
थोड़े बदमास .....सांवरिया
मैं अगर कहूं .....ओम शांति ओम
प्यार की एक कहानी.... कृष्
पल पल पल पल हर पल.....लगे रहो मुन्नाभाई
सर्वश्रेष्ठ गायिका के लिए मिले चार प्रतिष्ठित एवार्ड नेशनल
नेशनल एवार्ड 2003 बैरी पिया.....देवदास-बेस्ट प्लेबैक सिंगर
नेशनल एवार्ड 2006 धीरे जलना- पहेली -बेस्ट प्लेबैक सिंगर
नेशनल एवार्ड 2008 ये इश्क हाय-जब वी मेट -बेस्ट प्लेबैक सिंगर
नेशनल एवार्ड 2009 जीव डांगला- जोगवा (मराठी फिल्म) और फेरारी मन-अंतहीन (बंगाली फिल्म) -बेस्ट प्लेबैक सिंगर
चार फिल्म फेयर (साउथ फिल्म में गाए गीतों के लिए) एवार्ड
फिल्म फेयर आर डी बर्मन एवार्ड 2003 -बेस्ट सिंगिंग टैलेंट
फिल्म फेयर एवार्ड 2003 डोला रे डोला- देवदास -बेस्ट प्लेबैक सिंगर
फिल्म फेयर एवार्ड 2004 जादू है नशा है.....जिस्म -बेस्ट प्लेबैक सिंगर
फिल्म फेयर एवार्ड 2008 बरसो रे मेघा....गुरु -बेस्ट प्लेबैक सिंगर
फिल्म फेयर एवार्ड 2009 तेरी ओर- सिंग इज किंग - बेस्ट प्लेबैक सिंगर
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